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बुधवार, 20 जनवरी 2016

भारतीय अंग्रेज प्रशासन जारी है... 100 साल बाद भी

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जारी है ... 100 साल बाद भी
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मैं 'नरेन्द्र'  की आत्मा
 आज यहाँ से, स्वर्ग से, पूर्ण पूर्वाग्रह रहित होकर देख पा रहा हूँ ...
भारत! जो मेरा भारत हुआ करता था 
आज भी लगभग वहीं है ...
जहाँ मैंने छोड़ा था!!!
आज भी मेरे भारत वंशी वैसे ही भोले, सरल और सहज हैं
जैसे  आज से 100 साल पहले थे!
100 साल पहले जब मुझे 'विश्व धर्म संसद' में
भारत का प्रतिनिधित्व करने का
 ऐतिहासिक अवसर मिलना शेष था....
 तब मेरे 'भारत' के लिए
अंग्रेज ही 'साहब' हुआ करते थे।
अंग्रेजों की अंग्रेजी में बारंबार दी जाने वाली गालियों
(निकृष्ट, गँवार और दो-दो पैसे में बिकने वाला) को
भारत ना केवल अंगीकार कर चुका था, बल्कि नियति भी मान चुका था।
उनके लिए केवल अँग्रेज़ और अंग्रेजी जानने / बोलने वाले ही
कुलीन थे, समझदार थे
और ईमानदार या ऊँची कीमत पर बिकने योग्य थे!
भारत ने अगली पीढ़यों को सुधारकर
कुलीन, सभ्य और बहुमूल्य  की मान्यता दिलाने की चाह में
अंग्रेजी और अंग्रेजी सभ्यता के अनुकरण को अनु प्रेरित  करना उचित माना।
अंग्रेजी का अंगीकार उतना घातक ना था
जितना अंग्रेजियत का सिद्ध हुआ!
अंग्रेजी सीखकर सरकारी नौकरी पाने वालों को
अंग्रेजों  ने "कुशल व्यावसायिक नीति" के अंतर्गत
छद्म समकक्षता की मान्यता के साथ-साथ
शेष भारतीयों से अतिश्रेष्ठ जतलाना भी शुरु किया।
 इन छद्म मान्य, छद्म-श्रेष्ठों  भारतीयों में
और अधिक की पाने की चाह में
अंग्रेजियत में अंग्रेजों से भी आगे निकलने की होड़ लगी रही!
यहीं से 'भारतीय-अँग्रेज़'  कौम का जन्म हुआ!
सुविधा के लिए इसे कालांतर में इंडियन नाम  से जाना गया।
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 ये 'इंडियन' सही अर्थों में
भारतीय और अँग्रेज़ का
'मानसिक-सांस्कृतिक वर्णसंकर' हैं!!!
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 वर्णसंकर केवल 'परिवर्तित का भ्रम-मात्र'  है
वास्तविक  परिवर्तन नहीं!
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[भ्रम सदैव घातक है!
भ्रम जितना अल्पायु
उतना त्वरित क्षति-सुधार-संभव!]
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हे श्रेष्ठ भारत; आपको शीघ्रातिशीघ्र समझना चाहिये...
समझना ही होगा कि आप शेष विश्व के अनुगामी होने योग्य नहीं वरन्
सबके लिये अनुकरणीय थे आप
वही उचित भी है आपके लिये 
जापान की ही तरह सुदृढ़ थे आप !
किन्तु केवल स्व-संस्कृति संपन्न रहने तक!
दूसरे विश्वयुद्ध में जापान भी नेस्तनाबूद हुआ था
किंतु केवल भौतिक रूप से
जापानी संस्कृति सुरक्षित रही
उनकी जुझारू जिजीविषा को 6 और 9 अगस्त 1945 के परमाणु बमों के विस्फोट भी डिगा ना सके! 
वे फिर कमर कस खड़े हुए आपसे केवल 2 वर्ष पहले
उन्होंने अपने घरोंदो के तिनकों को बटोर जोड़ना शुरु किया
उस लगातार घात करते रेडियेशन की परवाह किये बिना!
और आप ?
आपके पास हर अनैतिक के अपनाने का बहाना सदैव तैयार रहता है ना!
रिश्वत ना देते / लेते तो क्या करते आप ? है ना!
आपके पूर्वजों को, अंग्रेजी के साथ-साथ अंग्रेजियत ओढ़ने की,
200 वर्षों की लगातार परतंत्रता की, विवशता थी शायद
किन्तु स्वाधीन राष्ट्र के स्वस्थ नागरिक होने के नाते
आपका दायित्व है कि
आप अपने हित-अहित का योजनाबद्ध
चिंतन, शोधन और परिमार्जन अवश्य करें!
इसके लिये आपको स्वयं से भी निर्लिप्त रहते हुए
तटस्थ रहकर विचारना होगा कि आप त्वरित लाभ के बदले
क्या-क्या और कितनी बड़ी-बड़ी हानियां उठाने जा रहे हैं!
अपनी ही अंतरात्मा से बहाना बनाया और
खरीदकर नौकरी पा ली,
खरीदकर मनचाही नियुक्ति करवा ली,
मलाईदार पद पाने थोड़ी मलाई चढ़ा दी ....
यही सब करते आये हैं ना आप !
यही कारण है कि अंग्रेज भारतीयों को
दो-दो पैसे में बिकने वाला कहते थे...
किन्तु वे गलत नहीं कहते थे...
सच में हम बिकाऊ हो गये थे...
आज भी बने हुए हैं... खरीदार हैं तो बिकना सहज है ...
कभी आप खरीद रहे होते हैं
तो कभी बिक रहे होते हैं
नहीं तो खरीदने बिकने का इरादा तो पाले हुए हैं ही!
 तभी आप अपने आपको भारत कहते हुए शर्माते हैं!
क्योंकि गौरवांवित भारत/ भारतीय होने के लिये तो
भारत के जग-प्रसिद्ध सांस्कृतिक मूल्यों का धारण आवश्यक है!
अपने आपको अनमोल बनाये रखना आवश्यक है!
आप डरे हुए हो.... भारतीय मूल्यों को अपनाने से कहीं
प्रतिस्पर्धा में पीछे तो नहीं रह जाओगे ?
व्यर्थ का डर है यह ...
समझने की बात है कि जिन मूल्यों को
विकसित देशों सहित सारी दुनियां अपनाने उन्मुख / उद्यत है
वे सांस्कृतिक मूल्य अप्रागैतिक या प्रतिस्पर्धा में बाधक कैसे हो सकते हैं???
 आओ हे भारत!
अपनी संस्कृति की ओर देखो.... परखो... समझो... बरतो... अपनाओ!!!
अंग्रेजी को नहीं अनावश्यक अंग्रेजियत को त्यागो!
ईमान खरीदने बोलियां लगाना छोड़ो!
किसी भी कीमत पर बिकने तैयार मत होओ !
इतना कर लोगे तो विश्वास मानो
अगले 25 सालों में अमेरिका, जापान सहित
सारी दुनियाँ फिरसे भारत की अनुगामी होगी !!!
(जैसा मैं स्वामी विवेकानंदजी को आज के संदर्भों में अनुभव करता हूँ ...
यदि वे स्वयं भी आज होते तो कुछ ऐसा ही संदेश दे रहे होते...)
#सत्यार्चन #SatyArchan #SathyArchan

....अपेक्षित हैं समालोचना/आलोचना के चन्द शब्द

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