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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

मेरी ही ख्वाहिश तुम्हारी होती...

SwaSaSan Welcomes You...
मेरा हर ख्वाब तुम जीते
ऐसी ना तो मेरी किस्मत थी
ना हसरत
हद तो तब है कि
तेरे ख्वाब मेरे अपनाते ही
तेरे अदाब बन बैठे 
अब ख्वाबों के होते हुए क़त्ल
दर्द नहीं देते मुझे
ख्वाब पालने की हसरत जो मर गई है!
नहीं पालता अब मैं कोई ख्वाब होश में रहते
फिर भी जाने कब किस तरह
अनजाने में
दिल के किसी कोने में
आवारा सी
अनचाही सी
कोई ना कोई ख्वाहिश
पनपते मिल जाती है
एक पल का जोश जगाती
फिर
डराती है
रुलाती है
जब
अंजाम का ख़याल आता है
हर पलती ख्वाहिश
कहीं ख्वाब ना बन जाए डरता हूँ
इसीलिये पनपती हुई ख्वाहिशों की सासें
खुद अपने हाथों घोंट रोक देता हूँ
डर है कहीं इश्क को इल्जाम गया
तो
आशिकी में भी
नाकाम गिना जाउंगा!
कम से कम 
एक ख्वाहिश तो ज़िंदा रहे
लम्हा-दर-लम्हा मरते हुए
मेरी आशिकी जिन्दा रहे !!!

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