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सोमवार, 5 नवंबर 2012

एक दिन "ख़ास आदमी" का 3 दिन कत्लेआम के ....2

SwaSaSan Welcomes You...
भाग 1 से आगे ....
अपने 'दौलतखाने' में लौटकर फिर 'न्यूज-धर्म ' खोजने लगा तो लगभग सभी चेनल पर 'सनसनीखेज ' कार्यक्रमों का समय हो चुका था। इन्हीं में से एक आई बी एन 7 पर "जिन्दगी-लाइव" चल रहा था! बंद करना चाहा मगर कर ना सका क्योंकि वहाँ जो चल रहा था उसे देख मेरा मानवता धर्म जाग उठा -

"जिन्दगी-लाइव" --- कार्यक्रम प्रस्तोता रिचा अनिरुद्ध से पहली मोहतरमा

निरप्रीत कौर मुखातिब थीं जो 1नवंबर 1984 की सुबह तक को लगभग 16-17 साल की होनहार कालेज स्टूडेंट और खुशहाल सिख भारतीय परिवार की समझदार बच्ची थी

मगर अगले दो दिनों के अन्दर वो और उस जैसी कई और भविष्य में भारत की होने वाली हस्तियाँ अपने ही वतन में अपने ही लोगों के

हाथों अपनी सरपरस्ती अपने राखी वाले हाथों को अपने सुख दुःख के पल-पल के संगी को कटते मरते

और अपने ही हाथों अरमानों से सजाये सँवारे आशियानों की चिता

में जलते ख़ाक में मिलते देखने को मज्ब्बूर अभागी अभागों में शुमार हो चुकी थीं /और कईयों हो चुके थे!

पूरे कार्यक्रम में और भी कई अपनी अपनी दास्तान

सुनाने वाली /वाले शामिल थे! बीच में दो-तीन बार मेरी पत्नी ने, ना देख पाने के कारण,

टीवी बंद करने की प्रार्थना की वे नियमित रोज वारदात दस्तक नियमित देखने वाली शेरदिल महिला हैं, मगर उनका भी आपबीती की सिर्फ दास्तानों को सुनकर बुरा हाल हो चुका था !

कुछ ऐसा ही आपका भी हाल हुआ हो अगर आप

यह देख रहे होंगे तो ...

मेरे सीने में भी शोले उठ रहे थे ना केवल उनके खिलाफ जिनके हाथों में तलवार याआग थी जो सीधे काटने या जलाने का काम कर रहे थे बल्कि उनसे 100 गुना

अधिक उनके प्रति जिन्होंने उन्हें यह काम सोंपा था उससे 10 गुना उन हरामखोरों के प्रति जो चुपचाप होते देख रहे थे जबकि उनकी रोजी ऐसे मौकों पर जुनूनियों को रोकने की अमन कायम रखने के लिए

अपनी जान तक कुर्बान करने की

और वतन के अमन के रास्ते में आये अपने पराये का भेद किये बिना मिटा देने की थी फिर भी चुप रहे वे---

और उनसे भी बड़े वे खानदानी हरामखोर जो इन जुनूनियों के आकाओं के करीबी बनने
और उनसे भी बड़े वे खानदानी हरामखोर जो इन जुनूनियों के आकाओं के करीबी बनने
की आस में इन जुनूनोयों को रोकने के अपने कर्त्तव्य के स्थान पर खुद भी इन्ही के


साथ मार काट में शामिल हो लिए !

क्या केवल उसी कत्लेआम का ऐसा सूरतेहाल था ......???

क्या हर तरह के साम्प्रदायिक दंगों में यही नहीं होता है---???

निर्दोष-निरपराध-निरीह लोगों का खून नहीं बहाया जाता है ???

फिर भी होता रहा है ....

हो रहा है .....

क्या आगे भी होते रहने देना चाहेंगे आप ???

(आप विचारिये और अपने विचार प्रस्तुत भी कीजिये तब तक यह 'ख़ास आदमी' अपने 'दैनिक धर्मों' को भी निभाने 'कलम' को विराम देने की इजाजत चाहता है !)

Charchit Chittransh

Founder
SwaSaSan

(स्वप्न साकार संघ /स्वप्न साकार संकल्प / स्वतंत्रता साकार संघ)http://swasaasan.blogspot.com/2012/11/senario-1rst-to-3rd-nov-1984.html

शनिवार, 3 नवंबर 2012

एक दिन "ख़ास आदमी" का 3 दिन कत्लेआम के ....Part 1

http://swasaasan.blogspot.com/2012/11/blog-post.htmlSwaSaSan Welcomes You...

दोस्तो;
"एक 'ख़ास भारतीय' (क्योंकि आम भारतीय तो वे लोग कहलाते हैं जो अपने महलों को गरीबखाना कहते हैं)यानी मेरे एक पूरे दिन को आप भी मेरे साथ जीकर देखिये फिर बताइये हम दिलवालों को 'हमारे भारत' पर फख्र क्यों (ना) हो !
कल सुबह अपने सबसे पहले धर्म परिवार के भरण-पोषण के हेतु अपने बन्धुआ कर्त्तव्य, (गवर्नमेंट लिमिटेड कंपनी कार्यालय जहां मैं अधिकारी के रूप में कार्यरत हूँ जिसका नियमित कार्यकाल 11 बजे दिन से शाम 6 बजे है, एवं जहां से त्यागपत्र स्वीकृति हेतु वर्षों से प्रयासरत हूँ) पर सुबह 8 बजे पंहुचा और अपने दुसरे आवश्यक 'पडौसी धर्म' को निभाने यानी 'विधर्मी' पडौसी के बेटे की शादी में सम्मिलित होने के उद्देश्य से कार्यालय से जल्दी (?) रात 9:30 पर निकला ! मेरे कार्यालयीन हालात इतने बदतर इसलिए हैं क्योंकि मेरे विभाग में 30-40% रिक्तियां वांछित योग्य उम्मीदवार 'भारत में अनुपलब्ध' होने के कारण रिक्त हैं (ध्यान दिलाना चाहूँगा - सामान्य शैक्षणिक योग्यता धारकों को भारत की सर्वोत्कृष्ट वेतन-भत्ते और आकर्षक पदोन्नति आदि सेवा शर्तों में हैं यहाँ; केवल 'मलाई' अनुपलब्ध!!)!!! क्या मुझे शर्मिन्दा नहीं होना चाहिये---
घर आते ही अस्वस्थ बीबी को शादी में साथ चलने मनाकर उसके तैयार होने तक, jजागरूक रहने का अपना
धर्म निभाने और तरोताजा होने 'न्यूज' देखनी चाही, वही ओछी व्यक्तिगत छींटाकशी के अलावा कुछ ना था कोई राजनेता अपनी प्रेयसी पर अधिक खर्चने के समर्थन में तर्क दे रहा था कोई दूजा तीजे की शादी के बाद पलटकर पत्नी को ना देखने पर प्रश्न उठा रहा था! यानी मेरे भारत में मुख्य समस्याएं केवल व्यक्तिगत ही शेष हैं ! क्या मुझे देश के इस राजनैतिक सूरतेहाल पर शर्मिन्दा नहीं होना चाहिए !
'हम दोनों ' शादी में गए शाकाहारी भोजन किया, मेजबान और बाकी पडौसियों से हंस-बोल कर 20-25 मिनट में फुर्सत हो गए (क्योंकि विधर्मियों के समारोह में पडौसियों के अलावा बाकी मेहमानों के लिए हम 'बाहरवाले' थे और बाहरियों में उस समय अकेले)! समझ नहीं आया फख्र करना चाहिए या फिक्र ....
(...निरंतर अगले भाग में ) 
Founder
SwaSaSan
(स्वप्न साकार संघ /स्वप्न साकार संकल्प / स्वतंत्रता साकार संघ)http://swasaasan.blogspot.com/2012/11/blog-post.html

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